NDA के ख़िलाफ़ दो बैठक और नाम पर सहमति को ‘विपक्षी एकता’ का एक ठीक क़दम माना जा सकता है....लेकिन संयोजक का नाम और सीटों के बंटवारे का काम ही तो असल संग्राम का सबब है....वहीं केवल नाम पर खुशी मना रहे विपक्ष से सवाल ये है कि, क्या केवल नाम से चल जाएगा काम....आखिर, चेहरा होगा कौन??